** गजल **
चलो प्रकृति के नजदीक चल के देखते हैं।
सुबह के सुहाने मौसम में टहल के देखते हैं।
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दोस्त बदले रिश्ते बदले जमाना बदल गया
चलो अब हम भी खुद को बदल के देखते हैं।
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क्यूं इतनी लापरवाही की हमने खुद के साथ
बहुत हो गया चलो अब संभल के देखते हैं।
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उजाले में सभी चलते हैं बेखौफ होके ही
कुछ पल को अँधेरों में चल के देखते हैं ।
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भ्रम से भरी इस दुनियां में सभी भ्रमित हैं
” पूनम ” हम भी इसमें बहल के देखते हैं।
@पूनम झा
कोटा राजस्थान