**गजल**
तुम तो जीते हो अपनी खुशी के लिए।
हम खुश हो लेते,तुम्हारी हँसी के लिए।
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कभी-कभी तरस खाती है ये जिंदगी
अपनी मजबूरी और इस बेबसी के लिए।
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सबके नसीब में मुहब्बत हो,जरूरी नहीं
कहो तो कुर्बानी दे दूँ, इस कमी के लिए ।
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अश्कों को हिदायत दी है इन आँखों ने
कोई जगह नहीं है यहाँ नमी के लिए ।
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काँटों पर तो कई चल लेते हैं यहां पूनम
मुमकिन नहीं अंगारों पर चलना सभी के लिए।
@पूनम झा
कोटा राजस्थान