गजल
गजल
कौन यादों में यूँ बसी सी है
क्यों निगाहों में खलबली सी है
चांदनी पूछती दरिंचो से
रात दुल्हन सी क्यों सजी सी है
रोक लेता पकड़ तिरा आंचल
पर मुहब्बत में कुछ कमी सी है
जानता भी नहीं मनाना मैं
और वो है कि बस रुठी सी है
आइना रख गया कुई सामने
आंख में फिर वही नमी सी है
हो रही हलचलें गुलिस्तां में
बेअदब इक हवा चली सी है
आप कहिए उसे सुनेगी वो
यार यूं दिल की वो भली सी है
कर न बंद खिड़कियां दिल की
धडकनें कुछ चली चली सी है
वंदना मोदी गोयल