गजल
“नहीं आती है नींद मुझे रातो को
तुम रोज ख्वाबो मे आना छोड दो,
ना हंस पाता हु मै तेरी खामोशी से
यूं खामोश रहके सताना छोड दो,
तेरी मुस्कान है संजीवनी मेरे लिये
तुम हर पल ये रुठ जाना छोड दो,
नहीं खिलते अब बागों मे फुल कहीं
तुम लब्जो को आजमाना छोड दो,
मुंह मोड लिया है अब बहारो ने यहा
यूँ रुठके हमसे दुर जाना छोड दो,
बिखेरदो फिर से बहार इन विरानो मे
सुर्ख अधरो पे गीत गुनगुनाना छेड दो,