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27 Sep 2016 · 1 min read

गजल-2

————–
बेखुदी में गुनगुनाना चाहिये।
वक़्त से लम्हा चुराना चाहिये।
——————–
जो इशारों में सदा जाहिर हुए
आज लफ्जों को ठिकाना चाहिये।
””””””””””””'”””
क्यूं दी मेहरबानियाँ तुमने मुझे ,
हक मुझे ये आजमाना चाहिये।
“””””””‘””””””
रात दिन रहती थी रौनक मेरे घर,
अब उसे भी इक बहाना चाहिये।
“”””””””””””””’
साथ खुदगर्जी नहीं रखना कभी,
गर तुम्हें अपना जमाना चाहिये।
“”””””””””””””””
भूख अब इंसा निगलती जा रही,
जिंदगी को शामियाना चाहिये।
“”””””””””””””
खेत,बगिया,लहलहाते बस वहीँ,
बारिशों को गावं जाना चाहिये।

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