गजल
कैसे कैसे दौर चले है
न्याय मांगने चोर चले है
हंसो की झीले हथियाने
कुछ कौअे कुछ मोर चले है
चीर हरण तक चुप बैठे थे
अब लिये जुबानी शोर शोर चले है
जो रातों के कातिल ठहरे
वो लेने स्वर्णिम भोर चले है
जिन पर कानूनों की बंदिश
वो संसद की और चले है ●