गजल
कहा किसी से नहीं है तेरे फसाने को।
ना जाने कैसे खबर हो गई ज़माने को।
कोई नजर नहीं आया था खाली बस्ती में।
ना जाने आग लगी कैसे आशियाने को।
चहार सु अब पतिंगों का खून होता है।
लहद पे लाओ न शमआ कोई जलाने को।
अकेला छोड़ कर जाओ ना अंजुमन में मुझे।
हमने है दिल से सजाया गरीब खाने को।
तुम्हारा नाम भी आएगा इस कहानी में।
करो जो हुक्म सुना दूं मैं इस फसाने को।
“सगीर” खौफ नहीं है मुझे रुसवाई का।
चांदनी शब में लिया फैसला बुलाने को।