माँ
हे माँ ! तेरी है छवि उच्च,
जग भर के रिश्तेदारों में।
तु देव तुल्य गंगा जल सी,
बसती मानव संस्कारों में।
है कहाँ कोई तेरे सम जो,
अपने पद का निर्वाह करे।
तु त्यागी तु तपस्विनी ,
हर पल जो खुद का दाह करे।
तु करूणा की सागर है माँ,
ममता की अनुवाद रही।
सारे संबंध तु झी से है,
हर रिश्तों की बुनियाद रही।
कुछ पुष्प तुम्हारे चरणों में,
शब्दों की आज चढ़ाता हूँ।
करना रक्षा हे मातु सदा,
मैं अपना शीश झूकाता हूँ।
–“प्यासा”