गजल
अपनी मोहब्बतों को नुमायां न कर सके।
तेरी नशाते रूह का सामां ना कर सके।
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आंसू गिरा के दर्द मेरा कम तो हो गया।
लेकिन हम अपने जख्म का दरमां न कर सके।
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तेरे अहद को तोड़कर जाऊंगा मैं कहां।
जो शमा बुझ गई है फरोजां न कर सके।
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अब हादसों के जद में मोहब्बत भी आ गया।
टूटा “सगीर” दिल कोई अरमां न कर सके।
शब्दार्थ
नुमाया =दिखावा
नशाते रूह= दिल की खुशी,आत्मिक हर्ष
दरमां=इलाज
अहद =वादा
शमा फरोजां= दीप जलाना
अरमां= इच्छा