लघुकथा “दो राहें एक राही”
लघुकथा
“दो राहें एक राही”
सुनील पी. डब्लयू० डी में इंजीनियर लगा हुआ था| उसकी ड्यूटी मेन आफिस में होती थी| अचानक उसकी डियूटी बाहर के कामकाज देखने और पुल की पूरी जिम्मेवारी पर लगा दी गई| सुनील बहुत संस्कारी और धार्मिक स्वभाव का था| उसने ये बात पत्नी को बताई तो वो खुश हो बोली, “अच्छा घर में पैसा आयेगा, हमारे दो बेटियाँ हैं, शायद प्रभु ने हमारी पैसे की कमी को सुन लिया है|” सुनील बोले, “तेरा दिमाग खराब है| क्या तुझे मैं ऐसा व्यक्ति लगता हूँ, हम पति-पत्नी कमा रहें है| बेटियों के विवाह के लिए बचा लेंगे, ऐसी राय मुझे पसंद नहीं|” सुनील बोला, “किसी गलत जगह दस्तखत हो गये या पैसा लग गया तो मैं स्तिथि को संभाल नहीं पाऊंगा|” सुनील काफी कशमकश के बाद डियूटी पर हाज़री दे आया| अफसर ने नये पुल पर डियूटी करने और सारी पैसे की जिम्मेवारी संभालने का आदेश दिया| सुनील सारी रात चिंता में खोया रहा और दो मन की दो राहों पर खड़ा प्रभु को मन ही मन याद करता सो गया| सुबह इत्तफाकन उसका इंजीनियर दोस्त उसके घर आ गया| सुनील ने बातों बातों में अपनी चिंता अपने दोस्त को बताई तो दोस्त बोला, “सुनील मेरी बदली अपनी सीट पर करा दे, तू मेरी आफिस वाली सीट पर आ जा| अपने एस.ई से बात कर ले, मैं भी कोशिश करता हूँ|” सुनील की पत्नी इशारों से उसे रोकती रही पर सुनील ने उस पर ध्यान नहीं दिया| सुनील ने बॉस के सामने अपनी अशांति और तनाव की बिमारी बता अपनी सीट बदलवा ली| वो मन ही मन बहुत शांति महसूस कर रहा था कि उसने अपनी गलत ढंग से पैसे की जिम्मेवारी से बचने में भलाई मान सीधी राह पकड़ ली|
मौलिक और अपकाशित।
रेखा मोहन १२