गजल
✒️?जीवन की पाठशाला ?️
मेरे द्वारा लिखित मेरी पहली ग़ज़ल
कैसे गजल सुनाऊँ तुम्हें
क्या गजल सुनाऊँ तुम्हें
कौन सा घाव दिखाऊँ तुम्हें
कौन सा दर्द बताऊँ तुम्हें -1
वक़्त ने जिस कदर मारा है मुझे
वक़्त ने जिस कदर गिराया है मुझे
वक़्त आसमान से जमीन पर लाया है मुझे
ये वक़्त -वक़्त की बात है कौन सा वक़्त सुनाऊँ तुम्हें -2
कल तलक काफिले थे पीछे मेरे
कल तलक झुकते थे सिर आगे मेरे
आज वही खंजर लिए तैयार हैं मारने को मुझे
कैसे दर्द ए दिल बतलाऊँ तुम्हें -3
सोचता हूँ अब दिन और रात
ये वक़्त की मार है या
है ये कर्मफलों की मार
अब तो परछाई से भी लगता है डर कैसे बतलाऊँ तुम्हें -4
वक़्त ने सिखलाया की कोई नहीं है तेरा
पराये तो हैं ही पराये अपना भी नहीं कोई यहाँ तेरा
सब साथी है चकाचोंध और सुख के
दुःख में क्या क्या बीती क्या बताऊँ तुम्हें -5
जिंदगी एक बोझ बन गई है
अपने लिए ही नहीं अपनों के लिए भी
मौत मांगता हूँ तो आती नहीं
इस जिन्दा लाश का क्या कफ़न दिखाऊं तुम्हें -6
इंसान मर गया मर गई इंसानियत
खाये जख्म इतने की डर गई मेरी रूहानियत
अब हर तरफ सन्नाटा है -भय है वीरानी है
मेले में भी हम अकेले -कैसे समझाऊँ तुम्हें -7
बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा ?सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क ? है जरुरी …!
?सुप्रभात?
स्वरचित एवं स्वमौलिक
“?विकास शर्मा’शिवाया ‘”?
जयपुर-राजस्थान