गजल
“किसी दिन सामने सच बनके आओ।
कभी तुम ख्वाबों के चिलमन हटाओ।
धड़कती है हवाओं में मुहब्बत,
हमारी दास्ताँ उनको सुनाओ।
निकल पाते नहीं जो खुद से बाहर,
है कुछ रूठे हुए उनको हंसाओं।
सुना हर पल बदलती गर्दिशे है,
हमें वो तारों की भाषा बताओ।
भटकती संग है राही के गलियाँ,
उन्हें भी तुम कोई रहबर सुझाओ।
“कभी बंजर न हो दिल की जमी ये,
इन आँखों में नमी तो छोड़ जाओ।
रजनी