गजल ००— हमारे हाथ में बस जिन्दगी का एक दिन है
हमारे हाथ में बस जिन्दगी का एक दिन है।
कहते लोग कैसे जिन्दगी यह चार दिन है।
वो दिन जब कयामत हमसे होगा रूबरू जी।
वही तो मौत का उपहास कर जीने का दिन है।
किये भय त्रस्त रहता मौत पूरी ज़िन्दगी को।
दुबक जायेगा जब भय से मौत जब वह एक दिन है।
न अरमां इश्क का होगा न चाहत ताजपोशी का।
खुदा पाने की होगी लालसा यह एक दिन है।
गुनाहों को बड़पप्न समझकर जो जिए आये।
भ्रम सब टूट जाये जब वही यह एक दिन है।
किये दिन के उजाले में सभी बेवकूफियां हमने।
अँधेरे में सयानों की तरह जीने का यह एक दिन है।
नहीं तो चांदनी होगी न सूरज या सितारे ही।
बुराई पर धुनेंगे सर यही तो एक दिन है।
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