गजल- सच कहूँ मशहूर होना चाहता हूँ
सच कहूँ मशहूर होना चाहता हू।
चाँद सा पुरनूर होना चाहता हूँ।।
बनके भौरा चूसता था रस गुलों का।
अब तेरा सिंदूर होना चाहता हूं।।
जो पिये मुझको ज़रा सा झूम जाए।
वो नशा भरपूर होना चाहता हूँ।।
ख़्वाब में उनके कभी आऊँ नही मैं।
नज़रों से काफ़ूर होना चाहता हूँ।।
मैं झुका हूँ डालियों सा जिंदगी भर।
अब तो बस मग़रूर होना चाहता हूँ।।
‘कल्प’ अब परिवेश गंधा हो चुका है।
गंदगी से दूर होना चाहता हूँ।।
अरविंद राजपूत ‘कल्प’
बह्रे- रमल मुसद्दस सालिम
अरकान- फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
वज़न- 2122 2122 2122