गजल वो शहर में आकर के
वो गाँव से शहर आया तो मेरे हालात पूछता रहा
झूठों की बस्ती के मरे हुए मेरे जज्बात पूछता रहा
वो देखकर आया था ख़्वाब शहर की ऊंचाइयों के
कितना हुआ कत्ल मैं यारो मेरे आघात पूछता रहा
मैं तो कत्ल होता रहा उस रात बार बार किश्तों में
सच में गच्चा खा गया मैं, मेरी औकात पूछता रहा
दरवाजे को ऊँचा कर किया था सर ना लगे कभी
वो भी मेरे नीचे इतना गिर जाने की बात पूछता रहा
शब्द निःशब्द है की गाँव तो मेरे दिल में बस्ता यारों
शहर में आकर ये गंवार मेरी शहरी जात पूछता रहा
मेरा रोना तो लाजिमी ही था इस दुर्घटना पर दोस्तों
रखकर मेरे हाथ में सूरज ,होगी बरसात पूछता रहा
अशोक पि गया अपमान का कड़वा घूंट फिर यारों
मेरी यादों को उघाड़कर कैसे कटी रात पूछता रह