गजल राहें इश्क में आये है
राहें इश्क में आये है दोनों हाथ को जोड़कर
हजारों उल्फत की कसम खाने को दौड़कर
रिमझिम बारिश है और रंजोगम की घटाएं
कागज पर रखी है आँखें अपनी निचोड़कर
बरसों से सीने में सुलगती आग को बुझा दें
होंठ पर होंठ रख दे शर्मो हया को छोड़कर
अब क्या लिखूं तुझ पर ऐ बेमिसाल हुस्न
तू आना पलकों की छाँव तारों को ओढ़कर
दरियादिली में तेरे इश्क का गुलाम बनने को
मैं आया अपने बादशाह वाले अहम तोड़कर
यादों के मधुर मधुबन में तेरा प्यार महके तो
अशोक नहीं देखेगा बिता वक्त गर्दन मोड़कर
अशोक सपड़ा की कलम से