गजल – महफिल में भी तन्हा हूँ……
मैं महफिल में भी तन्हा हूँ वो परदा करके बैठे हैं।
मैं घायल दिल ले बैठा हूँ वो परदा करके बैठे हैं।।
रुखसार पलट दो गर रुख से काफूर मेरी तन्हाई हो,
क्यों रूठे रूठे वो मुझसे अब परदा करके बैठे हैं।।
है जान परेशां क्यो मेरी समझा न सका अपने दिल को,
एक बार खता तो बतला दें क्यों परदा करके बैठे हैं।
हैं पास मेरे पर दूर बहुत नज़रों में समाये हैं मेरी,
दिलदार मेरे दिलशाद मेरे क्यों परदा करके बैठे हैं।।
तन्हाई मेरी चुभती दिल में एक बार नजर भर देखूंगा,
अब टूट रही है “आस” मेरी वो परदा करके बैठे हैं।।
कौशल कुमार पाण्डेय “आस”
बीसलपुर (पीलीभीत) -२६२२०१.