गजल — मन की बातें करके,तन के दर्द न जाये भुलाये
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मन की बातें करके,तन के दर्द न जाये भुलाये।
तन पर फाहे रखनेवाला अब तो कोई आये।
उमर वर्ष और युग ने जैसे खाये कसम हजार।
वैसा स्वपन दिखानेवाला अब नहीं कोई आये।
साँझ बाँझ हो गयी,सुबह की हो गयी सूनी माँगा।
दिन को कोई पति नपुँसक खुदा नहीं मिल जाये।
सागर के सरहद, सीमा पर खड़ी कँटीली झाड़ी।
इसे तोड़कर अब कोई मेरी युग की प्यास बुझाये।
गूँगी सारी वह बातें जो दर्द नहीं सहलाये।
बँद ओठ बातूनी जो वह दर्द को दवा पिलाये।
क्यों तनाव है मन में इतना, अज किसे फुर्सत है।
मन की भाषा समझे, मन की दारु-दवा कराये।
तन की जरुरत तिनके जैसी छोटी, रोटी-पानी।
मन को तन की यह छोटी सी बात कौन समझाये।
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