गजल – बिन बेटी ये संसार नहीं
समझो तो बेटी भार नहीं।
बिन बेटी ये संसार नहीं।
मूल यही मानों इस जग की,
बेटी जैसा आधार नहीं।
स्वर्ग – सदन बेटी से होता,
बिन बेटी तो परिवार नहीं।
महके जिससे घर आँगन ये,
बेटी सा मिलता प्यार नहीं।
पढ़-लिख रचती इतिहास यहॉं,
बेटी जैसा किरदार नहीं।
बेटा यदि आँखों का तारा,
बिन बेटी कुछ साकार नहीं।
चाहे घूमों गाबा – काशी,
बिन बेटी तो उद्धार नहीं।
रचनाकार
बलबीर सिंह वर्मा “वागीश”
गाँव – रिसालिया खेड़ा
सिरसा (हरियाणा)