गजल ज्ञानीचोर की
चाँद तारों की महफिल छोड़।
चलो अब आग से घर को सजाते है।। 1
टूटे तार जोड़ने को।
चलो! अब घर बसाते है।। 2
मिलेंगे रास्तें तन्हा।
चलो! अब दौड़ लगाते है।। 3
बिखरे हुए पैसे,उलझे हुए रिश्ते ।
लो इन कुछ धागों से,नये कपड़े बनाते है।। 4
ना मंदिर बनायेंगे, ना मस्जिद तोड़ेंगे।
चलो इक आदमी को हम,इन्सान बनाते है।। 5
आयेंगे अच्छे दिन,मैं ये कह नहीं सकता !
भाषण छोड़ दो अब तो,चलो कुछ दर्द मिटाते है।। 6
छोड़ दो तकरार, हिन्दु और मुसलमान।
चलो अब दर्द का मजहब बनाते है।। 7
इस गाँव में जन्मी या उस देश में जन्मी।
चलो अब हर लड़की को,अपनी बहिन बनाते है।। 8
ये माना तेरे कातिल, हुए है इस जमाने में।
चलो अब हम खुद को ही,सजा दिला ही देते है।। 9
अन्न खाता है किसका तू,फिर कुछ कर नहीं सकता।
चलो लाओं इक नेता,उसे किसान बनाते है।। 10
राजेश कुमार बिंवाल’ज्ञानीचोर’
गजल लेखन तिथि – रविवार 11 मार्च 2018
रात 11:47
9001321438