गजल- जिसे जीना नहीं आया
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जिसे जीना नहीं आया उसके हिस्से में रोना आया।
मेरे हिस्से में आया तो बस स्याह सा कोना आया।
हम जिसे जिन्दगी समझ रहे हैं जी,मौत से बदतर।
तुम्हारी जानो तुम,मेरे हाथ में टूटा सा खिलौना आया।
जिन्दगी की नींद लिए युगों से मारे-मारे फिरते थे।
मुझे अब यूँ न जगाओ कि, अभी ही सोना आया।
तुम्हारे दोस्त का कहना है कि खुशकिस्मत हो तुम।
तुझे देखा अदभुद अहंकार में, और मुझे रोना आया।
शब्द और लफ्ज जो आ न सके जुबाँ पर लिक्खा है।
ऐसा लगता है तुम सा ही मुझे भी सूई चुभोना आया।
जिक्र करते हुए एक पीड़ा और यातना सी होती है।
दंगा करते हुए कहिये क्यों इनको नहीं रोना आया?
उतरी जँगल से जो हवा, जँगली है वो क्या जाने।
इसलिए मुझे हर वृक्ष की किस्मत पर रोना आया।
आतंकवादियों ने कभी हर्फ न सीखे इन्सानों के।
इन्हें आया तो बेकार से शब्दों को पिरोना आया।
सजग मुल्क के प्रहरी, जरा मुस्तैद ही तुम रहना।
खूँखार दँगाईयों को बस हर मूल्य ही खोना आया।
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