गजल —— चाहने वालों ने मुझसे मुंह फेर लिया
चाहने वालों ने मुझसे मुंह फेर लिया
मुझे मुझमें कोई पटक गया सा है दोस्त
दिल में जलजला सा कुछ पैठ गया.
कोई उजाला दरक गया सा है दोस्त.
कुछ टूटा है क्या टूटा है बेहोश मैं हूँ
स्यात् हर सब्र तड़क गया सा है दोस्त.
मेरे पास यही सब्र मेरी पूंजी थी
शायद यही आज सरक गया सा है दोस्त.
अब आसमाँ में सूरज उगे या चांद रहे
मुझसे मेरा विश्वास चटक गया सा है दोस्त.
किसी दहलीज पे दस्तक सा आ बैठा हूँ
दरवाजा खामोश एक मूक शहर सा है दोस्त.
इस वाकये ने हिला-डुला दिया ऐसे
जिस्म तमाम हो खन्डहर गया सा है दोस्त.
जिरह कोई न सफाई और नहीं
जिन्दगी तमाशा हो जहर गया सा है दोस्त.
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arun कुमार प्रसाद