गजल :- मिल गया हुस्न-ओ-ज़माल हमें..
बह्र- ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मखबून
अरकान:- फ़ाइलातुन मुफ़ाईलुन फ़ेलुन
(2122 1212 112)
कर दिया पहले तो निहाल मुझे।
ज़िन्दगी से न अब निकाल मुझे।।
मैं तसव्वुर में खो गया तेरे।
अब रहा भी न कुछ ख़याल मुझे।।
मैं रियाया मे बाँटता दौलत।
अब नहीं चाहिए ऱिसाल मुझे।।
उनकी ऩज़रें करम पड़ीं हम पर।
मिल गया हुस्न औ ज़माल मुझे ।।
फाँस लेते हैं मीठी बातों में।
क़ैद कर के करें हलाल मुझे।
मात पाई है तेरे हाथों से।
हार कर भी नही मलाल मुझे।।
‘कल्प’ रोशन चराग़ अब होगा
मिल गया है तेरा ज़लाल मुझे।।
✍?अरविंद राजपूत ‘कल्प’