गजल-क्यों आज सक की निगाहो से देखते हो/मंदीप
क्यों आज सक की निगाहो से देखते हो/मंदीप्
क्यों आज सक की निगाहो से देखते हो,
ये दिल तुम्हारा है क्यों विस्वास नही करते हो।
आज फिर से आ गए मेरी आँखो में आँसु,
क्यों इन आँसुओ को पानी समझते हो।
राते हो गई छोटी तुम्हारी याद में,
क्यों हमारी महोबत का इम्तहान लेते हो।
छोड़ दिया सब कुछ उसकी चाहत में,
क्यों हमारे प्यार को झूठा समझते हो।
बदनाम हो गया “मंदीप” तेरे शहर में,
फिर क्यों उसकी सच्ची महोबत का मजाक उड़ाते हो।
मंदीपसाई