गगन में टूटता तारा दिखा है
गगन में टूटता तारा दिखा है
किसी की आस का दीपक जला है
महक कर नाचता ये डालियों पर
हवा ने फूल से क्या कह दिया है
लगा है नाचने अब मोर मन का
घिरी फिर सावनी देखो घटा है
बदलता वक़्त रहता चाल अपनी
तभी तो ज़िन्दगी कहते जुआ है
चला जाता अमावस सौंप इसको
हमेशा चाँद ही कब रात का है
गया है टूट इतना ‘अर्चना’ दिल
कि लेना साँस भी लगती सजा है
डॉ अर्चना गुप्ता