गंभीर बात सहजता से
गंभीर बात सहजता से
बस ज्यों ही बिठमड़ा गाँव से निकल कर हिसार की ओर आगे बढ़ी।
बदरों ने उत्पात मचा रखा था। इनका उत्पात देखकर चालक-परिचालक बंदरों के बारे में चर्चा करने लगे।
“ये पैदल और साइकिल सवार को निकलने ही नहीं देते। घेर कर काटते हैं।..” चालक बोला।
”इनको कोई थोड़ा सा छेड़ दे, सभी एकजुट होकर हमला कर देते हैं। इनकी एकता भी सबसे अधिक है।” परिचालक ने बताया।
“एकता हो भी तो क्यों नहीं? ये अपनी तरह जाति-पांति, धर्म-मजहब, वर्ण-वर्ग, भाषा व क्षेत्र में नहीं बंटे।”
ग्रामीण सवारी ने गंभीर बात सहजता से कह दी।
-विनोद सिल्ला