गंतव्य
पथिक मत भूल,
पथ पर शूल,
चुनने होंगे हो कर मजबूर,
जागो वीर,
मत बनो अधीर,
बाधाएँ नहीं रोक सकती ,
जो माटी की खुशबू के वशीभूत।
सुन अंत:करण की आवाज़
गा रही वीरता के राग,
रणभूमि में अधूरे अभी कई काज,
भर कदमों की आहट में ठाट,
यही तुम्हारा गंतव्य ,
तू कर्मठ
ना भूल सत्य का पाठ,
यही तुम्हारा कर्तव्य।
अरुणा डोगरा शर्मा✍ ©