गंतव्य में पीछे मुड़े, अब हमें स्वीकार नहीं
कोसू मैं भाग्य को
या अपनी तकदीर को
आँखों में आँसू भरूँ
या देखू हस्त लकीर को
वरदान माँगू हे प्रभु
ए मेरा अधिकार नहीं
गंतव्य में पीछे मुड़े
अब हमें स्वीकार नहीं
गिरी शिखर के उन्मुक्त हवा में
फूल खिलते पाया हूँ
धरणी के छाती जैसी
सहन शक्ति धरोहर अपनाया हूँ
कार्य पारंगत कुशल प्रशिक्षुक
मैं तो हेम कृशानु हूँ
सम दर्शीय अपरोक्ष निराकरण
समर अर्चि में भानु हूँ