गंतव्यों पर पहुँच कर भी, यात्रा उसकी नहीं थमती है।
उसकी खामोशियाँ शब्दों से कहीं ज्यादा बोला करती हैं,
हृदय में छिपे रहस्यों को बस आँखों से खोला करती हैं।
भावशून्यता का लिहाफ़ ओढ़े, वो अंधेरों से विचरती है,
कहीं दिख ना जाए ज़ख्म उसके, इसलिए तो रौशनी से डरती है।
दर्द की पराकाष्ठा, उसकी साँसों को कुछ यूँ कुचलती है,
की अविश्वास की खाई में, वो मूर्छित होकर सोया करती है।
मदद के लिए बढ़े हाथों पे वो, संशय की दृष्टि रखती है,
और भय का दंश छिपाने को, सहसा प्रहार तक करती है।
अतीत की निर्मम स्मृतियाँ, पग को यूँ छलनी करती हैं,
की गंतव्यों पर पहुँच कर भी, यात्रा उसकी नहीं थमती है।