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22 Aug 2024 · 1 min read

#गंग_दूषित_जल_हुआ।

#गंग_दूषित_जल_हुआ।
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भाव भगवन से मिलन का
लग रहा था हल हुआ।
पर यहाँ पर छल हुआ।

हर तरफ पाखण्ड का ही बोलबाला बढ़ रहा।
धर्म को धूरी बनाकर शीर्ष पापी चढ़ रहा।
मोक्ष देने की जुगत में पाल यह अवधारणा।
निर्दयी निश्छल को छलकर कर रहे हैं पारणा।

अंधश्रद्धा में नजाने
ज्ञान कब निर्बल हुआ ।
गंग दूषित जल हुआ।

वेद ने विधिवत बताया मोक्ष का है द्वार क्या।
हर ऋचा में तथ्य वर्णित पुण्य का आधार क्या।
छद्म – छल में फंँस रहा नादान क्यों बनता मनुज?
जानकर सबकुछ भला अनजान क्यों बनता मनुज?

चाह में बैकुण्ठ की जब
मन मनुज उच्छल हुआ।
पग पड़ा दलदल हुआ।

कलयुगी आडम्बरों का चर्म तुझ पर है चढ़ा।
हेतु क्या उस ईस ने जिसके लिए तुझको गढ़ा।
त्याग कर अभिप्राय जीवन किस भँवर में फँस रहा।
कलयुगी पीकर हलाहल स्वयं पर तू हँस रहा।

छद्मवेशी मोक्ष दाता,
बालि जैसा बल हुआ।
भक्त तब निर्बल हुआ।

✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’ (संजीव बृजेश)
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 35 Views
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