गंगा
*********** गंगा (दोहा) ***********
********************************
पावन सी बहती नदी,गंगा जिसका नाम।
गोदी में जिस के बसे,निर्मल-सुन्दर धाम।।
गोमुख से धारा बही, पहुंची बीच मैदान।
गंगा नदी नाम है मिला,भारत की है शान।।
गंगा मैया तारती, पुनीत जिसकी धार।
मानव मन पापी बड़ा,हरती ,मन से भार।।
जो भी जन जब है करे,गंगा मध्य स्नान।
अनिष्ट-विकार दूर हों,करता खुल के दान।।
मैली गंगा को करें, कूड़ा कर्कट डाल।
मलिन हुई मंदाकिनी, हो गया बुरा हाल।।
माँ हमारी भगीरथी,करते मान सम्मान।
सुबह शाम करे आरती, पूजता है जहान।।
मनसीरत हर हर गङ्गे,जपता नित है नाम।
सर्व कलुष मिट हैं गए,पीकर पावन जाम।।
*******************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)