गंगा
देवनदी निर्मल जलधारा।
नाम कई जाने जग सारा।।
गंगोत्री से प्रकटे गंगा।
सारा भारत है एक रंगा।।
लगे त्रिवेणी संगम न्यारा।
तट पर मेला लगता प्यारा।।
प्राकृतिक संपदा मां गंगे।
आस्था का आधार तरंगें ।।
जन्म मरण से मुक्ति देती।
पाप कष्ट पीरा हर लेती।।
भूल गए जब कर्तव्य नारा।
तब नमामि गंगे ने तारा।।
स्वच्छता में हो भागीदारी।
कल्याण करनी माॅं अवतारी।।
©✍️ अरुणा डोगरा शर्मा