गंगा- सेवा के दस दिन (चौथादिन)
गंगा- सेवा के दस दिन
चौथादिन- बुधवार 19 जून 2024
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16. गंगा मानव मात्र का करती है कल्याण। गंगाजल मुख में पड़े,जबहो महाप्रयाण।।
जब हो महाप्रयाण, मनुज पीते गंगाजल।
पाप मुक्ति के साथ शांत हो मन की हलचल।।
गंगा का शुभ-रूप बनाया है बे-ढंगा।
फिर भी जननी सम पालन करती मां गंगा।।
17.अपने मन में पीर ले,गंगा करे पुकार।
क्यों मेरे सुत कर रहे? मुझ पर अत्याचार।।
मुझ पर अत्याचार, किया मेरा तन मैला।
घर का कूड़ा कचरा,डालें भर-भर थैला।।
करने हमें सजीव ‘स्वच्छ-गंगा’ के सपने।
त्यागें, इस संकल्प-सिद्धि हित स्वारथ अपने।।
18.सागर में जाकर मिले पावन गंगा धार।
सारे पथ में,जीव की पाप मुक्ति उद्धार।।
पाप मुक्ति उद्धार,सहज में ही हो जाता।
गंगा जल में नहा,जीव जीवन फल पाता।।
हर हिंदू घर में हो,गंगाजल की गागर।
मां गंगा का हृदय दया करुणा का सागर।।
19.गंगा तट के तीर्थ हैं,पावन शुभ स्थान।
संदूषित करके इन्हें,क्यों करते अपमान??
क्यों करते अपमान,कहें गंगा को माता।
मां जैसा ही युगों-युगों से इससे नाता।।
जनजागृति से ही, कट पाएगा यह संकट।
स्वर्ग-सुखद अहसास, कराएं जब गंगा तट।।
20. कितना भी कचरा गिरे,नहीं अपावन गंग।
गंगा की गरिमा वही,मात्र बदलता रंग।।
मात्र बदलता रंग, विष्णुपद से यह निकली।
जटा-जाल से शिव के, यह धरती पर फिसलीं।। गंगा से संदेश हमें मिलता बस इतना।
एक बार गिरने पर…! गिरना पड़ता कितना!!
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