गंगा मां
ब्रह्म कमंडलु, विष्णु पदों से
शंकर जटा समायी,
भागीरथ तप बल से हर्षित
पृथ्वी पर चलि आई ।
सगर सुतों की तारनहारिणि,
शुचि सुतरंगिणि गंगे मां ।।
नमो-नमो मां त्रिपथगामिनी,
पतित पावनी गंगे मां ।
हिमनद गंगोत्री से उद्भव
भरतभूमि में छाई,
निज निर्मल पियूष से सारी
धरणी तृप्त कराई ।
जलचर, थलचर, नभचर सब हित,
सुधा प्रवाहिनि गंगे मां ।
अखिल जगत की पातक नाशिनि
पुण्य दायिनी गंगे मां ।।
अगणित शिष्ट जनों ने तेरे-
तट पर ध्यान लगाया,
शांत चित्त तपबल से अपने
नव-इतिहास रचाया ।
कल-कल छल-छल निर्मल स्वर-
वात्सल्य प्रदायिनी गंगे मां,
देव उपासित, वेद-वंदिता
मोक्ष दायिनी गंगे मां ।।
– नवीन जोशी ‘नवल’
बुराड़ी, दिल्ली
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