गंगा नदी
कुण्डलिया
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अति पावन गंगा नदी, कल-कल बहती नित्य।
इसकी शुभ गाथा लिए, भरा पड़ा साहित्य।
भरा पड़ा साहित्य, सनातन का विचार है।
यही देश की रीढ़, बहुत सुदृढ़ आधार है।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, पुण्य फलदाई चिन्तन।
गंगा नदी महान, स्नान इसमें अति पावन।
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निर्मल प्रिय पावन रहें, अपने देवस्थान।
वातावरण पवित्र हो, सभी रखें यह ध्यान।
सभी रखें यह ध्यान, यही कर्तव्य हमारा।
नैसर्गिक गतिमान, सनातन चिन्तन धारा।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, ज्ञान की गंगा अविरल।
युगों युगों से नित्य, धरा पर बहती निर्मल।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य