गंगा जैसी पवित्र हो तुम —आर के रस्तोगी
गंगा जैसी पवित्र हो तुम,मै ठहरा खारा सागर |
प्रेम रस मुझे पिला दो,भर दो तुम मेरी गागार ||
कृष्ण की तुम राधा हो,राम की तुम ही सीता हो |
कर्म कांड का उपदेश दो मुझको,तुम ही गीता हो ||
जी रहा था अब तक मै, देश के गंदे वातारण में |
अब तुम ही निकल सकोगी,इस गंदे आवरण से ||
शिव की तुम पार्वती हो,काशी में हमेशा वास करती हो |
बाहर निकल कर देखो,जहाँ जिन्दगी मुफ्त में बिकती हो ||
भोले बाबा का दर्शन करती हो,नित्य नियम से पूजा करती हो |
मेरा भी बेडा पार हो जाये,अगर मुझको भी शामिल करती हो ||
शिव तेरी गंगा मैली हो रही है,जहाँ नित्य नये कुकर्म होते हो |
अब तुम ही बचा पाओगे,क्यों नहीं तीसरा नेत्र तुम खोलते हो ?
रस्तोगी की कर बध विनती है,त्रिशूल से तुम अब प्रहार करो |
इस काशी नगरी का तुम,किसी न किसी तरह से उद्धार करो ||
आर के रस्तोगी
मो 9971006425