खड़ा नजर आया
**** खड़ा नजर आया ****
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खड़ा आगे वो नजर आया,
घना अंधेरा पसर आया।
गर्द मन की छंटती कब है,
बदन मैला था निखर आया।
कहा उसने तो भले में था,
वचन जो बोला अखर आया।
परख करता ही रहा साया,
नही कह पाया मगर आया।
चला मनसीरत नहीं वास्ते,
डगर पर उसका नगर आया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)