“ख़्वाहिशें लिखूं”
जिंदगी! तेरी आज़माइशें ख़तम हो, मेरी ख़्वाहिशें लिखूँ।
बिजली की आतिशें ख़तम हो, रेत पर कुछ बारिशें लिखूँ।
कमबख़्त जलती दोपहरी में झुलस रहें तेरे नाज़ुक तलवे,
खुदा का रहमों करम हो, इस वक्त को मैं शाजिशें लिखूँ।
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शशि “मंजुलाहृदय”