“ख्वाहिश”
“ख़्वाहिश”
तुम से ख़्वाहिश मेरी हमनशीं जानलो
अपनी धड़कन में मुझको बसा लीजिए।
पुष्प माला बना केश वेणी गुथूँ
अपने तनमन में खुशबू रमा लीजिए।
भोर आभा चुरा माँग लाली भरूँ
अपने माथे पे मुझको सजा लीजिए।
नेह बाती सरस प्रेम दीपक जलूँ
अपने नयनों का सुरमा बना लीजिए।
प्रीत काली घटा रूप घूँघट बनूँ
अपनी ज़ुल्फ़ों में मुझको समा लीजिए।
सीप मुक्तक बनूँ अधर चुंबन करूँ
अपनी नथनी में मुझको लगी लीजिए।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी (मो.-9839664017 )