ख्वाहिश
कान्हा यही ख्वाहिश है
ये ही आरज़ू।
तू मेरे रू-ब-रु हो
मैं तेरे रू-ब-रू।
दीदार कान्हा तेरा
होता है चार-सू ।
रखना यूँ ही मुहब्बत
तू मुझसे बा-वज़ू।
नस – नस तुम्हीं कन्हाई
तुम ही तो हो लहू।
हमदम हो आइने से
सँग मेरे हू-ब-हू ।
अपलक तुम्हें निहारूं
बे-सब्र दिल की ख़ू
है बाँसुरी तुम्हारी
ख़ुश्बू से गुफ़्तुगू।
सच झूठ मेरा मोहन
सब तेरे रु-ब-रू।
रखना सदा मुरारी
‘नीलम’ की आबरू।
नीलम शर्मा ✍️
ख़ू- आदतचार-सू-चारों दिशा बा-वज़ू-पवित्र