ख्वाहिशें
समेट लूं कुछ पल, जी लूं कुछ लम्हे कि जिंदगी तुझसे मोहब्बत हो गई है।अल्फाजों में बयां कैसे करूं,क्या चाहता है मन कि बेवजह मुस्कुराने की आदत हो गई है।ख़्वाबों को हकीकत में जीना चाहती हूं, ख्वाहिशों की ताबीर अब इबादत हो गई है।
समेट लूं कुछ पल, जी लूं कुछ लम्हे कि जिंदगी तुझसे मोहब्बत हो गई है।अल्फाजों में बयां कैसे करूं,क्या चाहता है मन कि बेवजह मुस्कुराने की आदत हो गई है।ख़्वाबों को हकीकत में जीना चाहती हूं, ख्वाहिशों की ताबीर अब इबादत हो गई है।