ख्वाहिशें
** ख्वाहिशें **
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ख्वाहिशें
रह गई अधूरी
ख्वाब हैं सब बिखर गए
खुशियों ने
छोड़ दिया है दामन
गमसीन हम जहाँ में
हाल बेहाल है
स्थिति बद से बदत्तर
मन है व्यथित
चित भी कमजोर है
सुन नहीं कुछ पा रहे
चहुँओर मचा शोर हैं
गुलिस्तां भी सूखा सूखा
जन्तु पक्षी मौन हैं
पानी है ठहरा हुआ
थम गई लहरें सभी
हवा है रुकी रुकी
सांसें भी थम गई
सुलग रहा धूँआ कहीं
मन में लावा दहक रहा
विचारों का ज्वारभाटा
है बहुत उमड़ रहा
हो रही उथल पथल
कुविचारों का जमावड़ा
जम रहा मस्तिष्क में
देखिए अब देखते हैं
किस दिशा-दशा में
ले जाएगी शेष जिन्दगी
मनसीरत,तो चल पड़ा है
दिशाहीन दिशा की ओर
जहाँ नहीं शोर और न छोर…।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)