ख्वाहिशें
ख्वाहिशें
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सपनों से निकलकर ख्वाहिशें
अंगड़ाईयाँ लें,यह उनका अधिकार है।
सृष्टि में पौरूष,सृष्टि का चमत्कार हैं।
आदमी के लिए आदमी की ख्वाहिसें
बुद्ध बनने की नहीं
सम्राट बनने की होती है।
सपने और ख्वाहिसें गुलाम होती हैं।
स्वार्थ का हो तो तानाशाह।
परम पवित्र हो तो मनुष्य विराट।
महान ख्वाहिशों ने
विस्तारवाद को हवा दी है।
विस्तारवाद ने युद्ध को।
किन्तु, युद्ध की भयावह विभिषिका ने
विरत किया है योद्धा को।
यह किसी ख्वाहिश का पतन नहीं
बल्कि दिया हुआ वरदान उत्थान को।
खगों की ख्वाहिशें
आजाद आसमान है।
और आम आदमी की
मर्यादित गुलामी,
यह जिन्दगी के उधेड़बुनों का।
स्व के सत्य का, नितांत अपमान है।
जन्म लेने की ख्वाहिश
इच्छामृत्यु का वरदान बने।
मर जाने की ख्वाहिश
पुर्नजन्म में ख्वाहिशें जीने का
इन्तजाम बने।
क्षण की ख्वाहिश
क्षण रह जाना नहीं होता।
बड़ा होना ही ख्वाहिश है।
बड़ी शिद्दतों से पाली जाती हैं ख्वाहिशें।
बड़ी जिद्दी बनाई जाती हैं
तोड़ते टूटती नहीं
जाती है तोड़ जिन्दगीयाँ,परम्पराएँ,मान्यताएं।
और आदमी।
इतिहास,भूगोल,गणित,अर्थशास्त्र,ज्ञान-विज्ञान
सबसे दीक्षित होना नीयत है इसकी।
नहीं हो तो तय फजीहत है इसकी।
उम्र चिरंतन है इसकी
एक से दूसरे को हस्तरांतरित।
लिए रहती है पुनर्जन्म।
युवा,बुढ़ापा कुछ नहीं।
सुरसा के मुख की तरह बढ़ना प्रकृति है इसकी।
किन्तु,अकाल मृत्यु ही नियति है इसकी।
ईश्वर बनने की तुम्हारी पाशविक ख्वाहिशों ने हमें
विजयी बनने की तुम्हारी पराजित ख्वाहिशों ने हमें
कुबेर बनने की तुम्हारी दरिद्र ख्वाहिशों ने हमें
अतीव पीड़ा दिये हैं
मनुष्य की श्रेणी से पतित करने की
तुम्हारी कुत्सित ख्वाहिशों से
मर्माहत हुए हम।
ख्वाहिशें हैं सर्वदा युवा रहने को श्रापित।
निरंतन रहने को मोहित।
आदिम नहीं है ख्वाहिश।
अन्तिम नहीं है ख्वाहिश।
चित्त की विह्वलता मात्र है ख्वाहिश।
विरासतता का कुपात्र है ख्वाहिश।
तुम्हारी ख्वाहिशों को श्राप
तुम्हारी ख्वाहिशों को आशीष
जो चाहिये
सपने का बीज वैसा रोपो।
——————————9-7-24