#ख्वाहिशें #
ख्वाहिशों का जिक्र तो बस इतना था,
हसरतें बेशुमार थीं, पर तू कहां अपना था,
इक अधूरी सी तमन्ना लिए जीती रही कुछ यूं,
जब भी तू मिले, बस मेरा होकर रह जाए,
जिंदगी में ख्वाहिशों का किनारा नहीं होता,
दिल कब बदल जाए, गुमां तक नहीं होता,
कुछ ख्वाहिशें पूरी हुई, तो कुछ अधूरी रहीं,
कुछ सब्र दे गईं, तो कुछ दर्द बेहिसाब,
ये ख्वाहिशें मचलती हैं, बेहिसाब,वक्त़-बेवक्त़
ये मर जाएं तो फिर जश्न-ए-बहारा नहीं होता।