ख्वाब में महबूब
कितनी रंगीन वो चाँदनी रात थी।।
चाँदनी रात थी, चाँदनी रात थी।।
तारों के बीच में एक माह-ए-जबीं।।
अप्सरा थी की वो या थी कोई परी।।
जुल्फें उसके थे पूरी खुली की खुली।।
जैसे गुलशन से होकर सबा हो चली।।
जैसे फूलों के खुशबू की सौगात थी।।
चाँदनी रात थी, चाँदनी रात थी।।
झील आँखे थी और स्याह उसके थे बाल।।
नागिनों की तरह थी अजब उसकी चाल।।
सर से ले करके पाँव तलक का वो ढाल।।
जिस्म ऐसे था मोती का जैसे मिसाल ।।
देखने को उसे जुगनुओं की लगी एक बारात थी।।
चाँदनी रात थी, चाँदनी रात थी।।
चेहरा उसका था गोया के वो चाँद था।।
देख करके जिसे इतना मैं शाद था
उसका एक अक्स था दिल के तालाब में,
उस हंसी रात में, उस हंसी खवाब में।।
ऐसा लगता था हूरों की वो जात थी।।
चाँदनी रात थी, चाँदनी रात थी।।
✍️ शाह आलम हिन्दुस्तानी