ख्यालों में बसते थे पहले
ख्यालों में बसते थे पहले
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लोग सामने आने लगे,
छिप कर रहते थे पहले।
करने लगे बातें सरेआम,
पीठ पीछे बोलते थे पहले।
बहकने लगे कदम उनके,
संभल कर चलते थे पहले।
डोर प्रीत की है टूटने लगी,
प्रेम में बंधे होते थे पहले।
निडर घुमने लगे खुलेआम,
सब से जो डरते थे पहले।
ख्वाब टूटने लगे हैं झट से,
नींद में जो आते थे पहले।
मनसीरत बन गया बेचारा,
ख्यालों में बसते थे पहले।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)