खौफ भी ऐसा है साहब कह नहीं पाएंगे हम
ख़ौफ भी ऐसा है साहब, कह नहीं पाएंगे हम।
भूलकर भी कह दिया तो जान से जाएंगे हम।।
मिट गए हैं रास्ते पर हौसले हारे नहीं।
इन फिज़ाओं में सुनो तुम फिर खुशी लाएंगे हम।।
वो जरा सी कामयाबी देखकर जलने लगे।
आसमां जैसे जमाने पर अभी छाएंगे हम।।
प्यार का है कारवां ये नफरतों से देख मत।
क्रांतिकारी गीत मिलकर देख फिर गाएंगे हम।।
गर बुराई कर रहे हैं तो नहीं हैरानगी।
दुश्मनों की आंख को कैसे भला भाएंगे हम।।
कवि गोपाल पाठक “कृष्णा”
बरेली, उप्र