खौफ किस बात का
कैटेगरी जनता में एक आकलन है.
जो सारणी बनती है, वो स्वाभाविक है.
ये मत एक वैज्ञानिक मत है,
जिसे धर्म सिरे से नकार देते है.
आस्था और विश्वास के ढ़क्कनसे दबा देते है, तर्क वितर्क को विराम दे देते है.
जिससे चलन तो चलते रहते है.
पर गति अवरुद्ध हो जाती है !
रुके हुआ पानी जैसे बदबूदार हो जाता है.
वे ही पुरानी बातें,तथ्य,कथन, विधि विधान
आदमी सदियों से कैसे ढोह रहा है.
सोचनीय विषय है,
खैर !
मैंने सुना भी है और पढ़ा भी.
इस दुनिया में तथाकथित धार्मिक लोगों ने
तरह तरह की भौतिक रचना करके स्थल वा संस्थान/संस्थाओं का निर्माण किया.
फिर प्रचार प्रसार के सहारे से अज्ञानता के सहारे,
ज्ञान का दमन सुचारू रूप से चलन में आ गया,
समय समय पर.
कुछ पुस्तकों के माध्यम से रहस्य में तबदील कर दिया.
साधारण बुद्धि वाले,
इससे बाहर नहीं आ पाये.
किसी दैवीय शक्ति के प्रकोप से बचने के उपाय सुझाव दिए गए.
और आदमी स्वयं को दयनीय हालात के प्रति असहाय महसूस करते रहा.
मनुष्य एक बुद्धिमान जीव है.
वह सोच सकता है.
याद रख सकता है.
मनन कर सकता है.
वह हंस सकते है.
रो सकते है.
भावनाओं से बंधा है.
उसे एक चिड़ियाघर में कैद किया धर्म ने.
अपने चक्रव्यूह में फंसे रह गया.
वर्तमान में आज तलक तोड़ कर बाहर आ न पाया.
जिसने भी कोशिश की लोगों ने फांसी देकर या जहर पिलाया और गहरी नींद सुला दिया.
बाद में आत्मग्लानि में उसी को ईश्वर मानकर, पूजन किया.
मालाऐं पहना दी.
आज वह भगवान बन गया.
जो कल तक.
आंखों का सबसे बड़ा काँटा था.
धार्मिक लोग इतने दमनकारी है.
वे नई सोच और नए हालात से इसलिये डर जाते है कि तुम्हारे व्यापार का क्या होगा.
तरह तरह की परिस्थितियों के अपने आधारभूत ढांचे इख्तियार करते है.
और इंसानी मनोबल की कमान अपने हाथों में रख लेते है.
और दमनकारी नीतियों के बल पर समाज पर भारी पडते हैं.
छोटा बडा
ऊंच नीच
जाति वर्णव्यवस्था इंसानी व्यवस्था जिसे लोगों पर थोपे गया.
मनोबल को ध्वस्त करने के सिवाय कुछ नहीं है.
खौफ तीन तरह से फैलाये जाते है.
1-किसी भगवान की उत्पत्ति और सृष्टि सृजन की कथाओं और कहानियों के जरिये से.
2. दब बल के प्रयोग से अहंकारी भाव से दमन करके.
3.रहस्यमयी बातें फैलाकर.
एक ही मार्ग है. जो सनातन है. वह है, बुद्धि का मार्ग, रहस्यमयी घटनाओं के प्रति जानकारी प्राप्त करके,
पर्दाफाश कर करके.
और ये आपको करना ही होगा.
मृत्यु अटल सत्य है.
वो आनी ही है.
अकाल मृत्यु से आप स्वयं
शरीर
मन के प्रति
भावनाओं पर अंकुश लगाकर कर सकते है.
कोई महामृत्युंजय मंत्र ऐसा नहीं.
जो इसे टाल सके.
आप अपनी समस्या खुद खोजें.
आपका शरीर रुग्ण है.
या मन.
पहचान करें.
तत्पश्चात ही आप उससे पार पा सकते है.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस