“खो गये उन्मुक्त दिन “
क्यों खो गये वो उन्मुक्त दिन ,
बरबस आँखों में उमड़ गये ,
निज सूने मन में ले अंगड़ाई ,
झरने से निर्झर बरस पड़े ,
कहाँ गये वह खेल खिलौने ,
कहाँ गयी वह अभिलाषायें ,
नन्हे नन्हे वह स्वप्न सलोने ,
तिनके तिनके वे बिखर गये ,
स्मृतियों से आप्लावित मन ,
सहेज रहे नूतन अनुबंधन ,
आयातित खुशियाँ लेकर ,
उन्मत्त हुआ फिर ये मन ,
बरसों के सपनों की धारा ,
बह चली आज हो उद्वेलित ,
हाँ खो गये वो स्मिति-दिन ||
…निधि…