मंद पड़ी विद्वता
इस कालखण्ड में न, ग्रन्थ दिव्य हो रहे हैं,
आज तो सिसक हर, ओर रही कविता।
लिखने को लिखते हैं, आज भी कवित्त कई,
पर कहाँ दिखती है, पूर्व जैसी भव्यता।
सूर रसखान नहीं, तुलसी कबीर नहीं,
नहीं भावभूमि वह, मंद पड़ी विद्वता।
कि काव्य मंचों पे लोग, बोलते लतीफे आज,
बहती कहाँ है अब, ज्ञान वाली सरिता।
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 28/08/2021